Tuesday 28 February 2012

भारतेन्दु युग के साहित्यिक महत्व

भारतेन्दु युग के साहित्यिक महत्व

      आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को भारतेन्दु युग की संज्ञा प्रदान की गई है। यह नामकरण सुकवि भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र के महिमा मण्डित व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर किया गया। भारतेन्दु युग के पूर्व कविता में रीतिकालीन प्रवृत्तियाँ विद्यमान थीं। अतिशय श्रृंगारिकता, अलंकार मोह, रीति निरुपण एवं चमत्कारप्रियता के कारण कविता जन-जीवन से कट गई थी। देशी रियासतों के संरक्षण में रहने वाले कविगण रीतीकाल के व्यामोह से तो उबरना चाहते थे और ही उबरने का प्रयास कर रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में भारतेन्दु जी का काव्य-क्षेत्र में पदार्पण वस्तुतः आधुनिक हिन्दी काव्य के लिये वरदान सिध्द हुआ। उन्होंने काव्य क्षेत्र को आधुनिक विषयों से संपन्न किया और रीति की बँधी-बँधायी परिपाटी से कविता-सुन्दरी को मुक्त करके ताजी हवा में साँस लेने का सुअवसर प्रदान किया।

    भारतेन्दु युग में परंपरागत धार्मिकता और भक्ति भावना को अपेक्षतया गौण स्थान प्राप्त हुआ, फिर भी इस काल के भक्ति काव्य को तीन वर्गौं में विभाजित किया जा सकता हैं - निर्गुण भक्ति, वैष्णव भक्ति और स्वदेशानुराग-समन्वित ईश्वर-भक्ति। इस युग में हास्य-व्यंग्यात्मक कविताओं की भी प्रचुर परिणाम में रचना हुई

     काव्य-रूप की दृष्टि से भारतेन्दुयुगीन कवियों ने प्रधानतः मुक्तक काव्य की रचना की है। खडी बोली की कविताओं में व्यावहारिकता पर बल होने के फलस्वरुप ब्रजभाषा के कवि अन्य भाषाओं से शब्द चयन के विषय में क्रमशः अधिक उदार होते गए, अतः भोजपुरी, बुंदेलखंडी, अवधी आदि प्रांतीय भाषाओं के अतिरिक्त उर्दू और अंग्रेजी की प्रचलित शब्दावली को भी अपना लिया गया। दोहा, चौपाई, सोरठा, कुंडलिया, रोला, हरिगीतिका आदि मात्रिक छंद और कवित्त, सवैया, मंदाक्रांता, शिखरिणी, वंशस्थ, वसंततिलका आदि वर्णिक छंद कवि-समुदाय में विशेष प्रचलित रहे।

भारतेन्दु युग के कवियों की सबसे बडी साहित्यिक देन केवल यही मानी जा सक्ती है कि इन्होंने कविता को रीतिकालीन परिवेश से मुक्त करके समसामयिक जीवन से जोड दिया भारतेन्दु आधुनिक काल के जनक थे और भारतेन्दु युग के अन्य कवि उनके प्रभामंडल में विचरण करने वाले ऐसे नक्षत्र थे जिन्होंने अपनी खुली आँखों से जन-जीवन को देखकर उसे अपनी कविता का विषय बनाया इस काल में कविता और जीवन के निकट का संबंध स्थापित हुआ और यही इस कविता का महत्व है


 ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हिंदी लेखक अमरकांत और श्रीलाल शुक्ल जी को बधाईयाँ देते हुए श्रीलाल शुक्ल का जीवन एवं रचना का संक्षिप्त परिचय देना चाहता हुँ। श्रीलाल शुक्ल जी हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार है। श्रीलाल शुक्ल का जन्म लखनऊ की मोहनलाल गंज बस्ती के पास अतरौली ग्राम में 31 दिसम्बर, 1925 में हुआ। उनके परिवार गरीबों का था, पर पिछली दो-तीन पीढियों से पठन पाठन की परम्परा थी। इनके पिता का नाम व्रजकिशोर शुक्ल है। उनके पिता गरीब थे,पर उनके संस्कार गरीबी के न थे। उनके पिता को संस्कृत, हिन्दी, उर्दू का कामचलाऊ ज्ञान था। गरीबी और अभावों की स्थिति श्रीलाल शुक्ल के बचपन से हैं। उनके पिता का पेशा न था। उनके जीवन कुछ समय तक खेती पर, बाद में श्रीलाल शुक्ल के बडे भाई पर निर्भर रहे। श्रीलाल शुक्ल की माँ उदारमन और उत्साही थी। प्रेमचंद और प्रसाद की कई पुस्तकें श्रीलाल शुक्ल आठवीं कक्षा में ही पढी थी। वे इतिहास साहित्य और शास्त्रीय संगीत के प्रेमी है। उनकी मिडिल स्कूल की शिक्षा मोहनलाल गंज, हाईस्कूल की शिक्षा कान्यकुब्ज वोकेशनल कॉलेज, लखनऊ और इन्टरमीडियट की शिक्षा कान्यकुब्ज कॉलेज, कानपुर में हुई। इन्टरमीडियट होने के बाद उन्होंने सन् 1945 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बी.ए में प्रवेश लिया। बी.ए के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय में एम.ए और कानून की शिक्षाओं में प्रवेश लिया। सन् 1948 में घर जाकर शादी कर ली, पत्नी का नाम गिरिजा थी। गिरिजा जी बहुत अच्छी श्रोता थी, साहित्य और संगीत की अच्छी जानकारी थी। उनके तीन पुत्रियाँ और एक पुत्र है। सन् 1949 में उत्तरप्रदेश सिविल में नियुक्ति पाया, बाद में आई.ए.एस में प्रोन्नत, सन् 1983 में सेवानिवृत्त। सरकारी नौकरी में आ जाने के बाद लेखन से वास्ता रहा।

         श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व बडा पारदर्शी है। वे बहुत परिश्रमी, ईमानदार, शीघ्र निर्णय लेने वाले आदमी है। काम में उनका प्रैक्टिकल एप्रोच है। वे सबके प्रति समान आदरभाव रखते है। उनके गाँव के जो मित्र हैं, उनके साथ अवधी में बातें करने का अटूट आकर्षण है। अनेक साहित्य सम्मेलन में भी ये सभी शामिल होते हैं। व्यावहारिक होने के नाते उनके दोस्तों के साथ भी गहरी मित्रता बन गयी है। उनके रचनाओं के आधार पर समझते हैं कि श्रीलाल शुक्ल व्यावहारिक, साथ ही सहानुभूति भी है। श्रीलाल शुक्ल के बारे में लीलाधर जगूडी समझाते है कि श्रीलाल शुक्ल के लिए अपना समय, अपना समाज और अपने लोग ही महत्वपूर्ण है। एक उपन्यासकार के रूप में वे आजादी के बाद के समाजशास्त्री और इतिहासकार है। वे तरह-तरह से आजादी के बाद के समाज की मूल्यहीनता और आधुनिकता के संकट के साथ-साथ राजनीति के हाथों पराजित होते समाज को इतिहास में प्रवेश दिलाते हैं

         साहित्य के प्रति श्रीलाल शुक्ल जी की रूचि अनेक रचनाएँ लिखने में सफल हुई। हास्य, व्यंग्य उपन्यास, अपराध कथाएँ, अनेक कहानियाँ, व्यंग्य निबंध, टिप्पणियाँ, जीवनी, आलोचना, अनुवाद में सफलता पाई। इसके साथ हिन्दी हास्य-व्यंग्य संकलन का सम्पादन भी किये। उनके प्रसिद्द यंग्य उपन्यास राग दरबारी का सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया। सन् 1969 में राग दरबारी पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। सन् 1979 में मकान पर मध्य प्रदेश साहित्य परिषद का देव पुरस्कार मिला। सन् 1988 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान व्दारा साहित्य भूषण सम्मान मिली। सन् 1994 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का अतिविशिष्ट लोहिया सम्मान मिली। सन् 1996 मध्य प्रदेश शासन व्दारा शरद जोशी सम्मान मिली। सन् 1997 में मध्य प्रदेश शासन व्दारा मैथिलीशरण गुप्त सम्मान भी मिली। श्रीलाल शुक्ल को  भारत सरकार  ने  2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है। देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 45वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार से वरिष्ठ साहित्यकार श्री लाल शुक्ल को भारत सरकार ने सितम्बर, 2011 में सम्मानित किया है। ऐसे महान साहित्यकार के बारे में शोध प्रबंध प्रस्तुतकर, पी.एच.डी उपाधि पाकर एक शोधार्थी के रूप में मेरा जन्म भी सार्थक हुई। इसलिए श्रीलाल शुक्ल जी को बधाईयाँ देते हुए आप सब को धन्यवाद।
रचनाएँ:
उपन्यास:
कहानी संग्रह:
यह घर मेरा नहीं है ,सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ,
व्यंग्य संग्रह:
आलोचना:
जीवनी:
बाल साहित्य:






                     

6 comments:

  1. Isme amarkant k.. bare m..nahi likha

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  2. Keya aap char mahan bhartendu yug k..lekhak k.. naam bta denge

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 08 सितम्बर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. बहुत ज्ञानवर्द्धक!

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  5. Sahityik pravritiyan aur Kavya pravritiyan donon kya ek hi hai

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  6. https://www.hindisarang.com/2020/02/bhartendu-yug-ke-kavi-aur-rachnaye.html

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